Health Insurance खरीदने से पहले

जी हाँ अक्सर बहुत से लोग ये सवाल पूछते हैं की हमें Health Insurance या Mediclaim Policy होने पर भी कंपनी पूरे पैसे नहीं देती ऐसा क्यों?

Health Insurance Be Aware Be Smart

दोस्तों, ऐसा इसलिए होता है की कंपनी का representative या Insurance Agent हमें policy के बारे में केवल अच्छी-अच्छी बातें ही बताते हैं और कुछ बातें वो बड़ी ही चालाकी से छुपा लेते हैं और नतीजा ये होता है Claim के समय हमारा बहुत सा पैसा काट लिया जाता है।

Deduction on Insurance Claims

हमें Health Insurance या Mediclaim Policy लेते समय या Policy को renew करवाते समय कुछ सवाल कंपनी के representative या Insurance Agent से जरूर पूछने चाहिए। आइये जानते हैं उन सवालों को :

1. पहला सवाल : को-पेमेंट (Co-Payment) कितना होगा ?

को-पेमेंट (Co-Payment) राशि का वह हिस्सा होता है जिसे Policy Holder को क्लेम के समय खुद वहन करना होता है यानि की Insurance Company उसके ईलाज के बिल से कुछ परसेंट पैसा काट लेती है। मान लीजिये अस्पताल का बिल 100 रूपए आया है तो कंपनी आपको 80 रूपए ही दे या 70 रूपए ही दे। यह आपकी की पालिसी की टर्म एंड कंडीशंस पर निर्भर करता है। इस बात को Policy लेते समय या Policy को renew करवाते समय Company या Insurance Agent छुपा लेते है। हालांकि सभी ऐसा नहीं करते लेकिन ऐसा करने वालो की संख्या बहुत अधिक है। इसलिए Insurance Company ya Insurance Agent से यह सवाल कीजिये और जागरूक ग्राहक बनिए !

2. मैंने कोई क्लेम नहीं लिया मेरा NCB कितना होगा ?

यदि हम अपनी Mediclaim Policy में पूरे साल कोई क्लेम नहीं लेते तो हम NCB यानी No Claim Bonus के हक़दार हो जाते हैं। मतलब हमारे क्लेम न लेने से इन्शुरन्स कंपनी की थोड़ी सी बचत हो गयी तो हमें भी तो कुछ फायदा मिलना चाहिए। NCB के रूप में कंपनी या तो Policy Renew करवाते समय प्रीमियम पर कुछ डिस्काउंट देती है या इन्शुरन्स कंपनी हमारे Sum Insured को बढ़ा देती है। सभी Insurance Company यह डिस्काउंट पालिसी की पहले से बताई गयी शर्तो यानी Policy की Terms & Conditions के आधार पर देती है। तो अगली बार अपना No Claim Bonus लेना ना भूलें।

3. मेरा policy में वेटिंग पीरियड कितना होगा ?

सबसे जरूरी बात जिसके बारे मैं या तो हमें पता ही नहीं है या हम पूछना ही भूल जाते हैं और इन्शुरन्स एजेंट इसे जान बूझ कर छुपा लेते हैं। हर Mediclaim Policy या Health Insurance Policy में एक वेटिंग पीरियड की शर्त होती है। नयी या Fresh Policy लेने पर पहले 3o दिनों तक कंपनी कोई क्लेम नहीं देती। हाँ, क्लेम यदि दुर्घटना या Accident का है तो उस पर यह शर्त लागू नहीं होती। और 3o दिन पूरे होने के बाद भी कुछ बिमारियों का क्लेम 2 साल तक नहीं मिलता और किसी किसी बीमारी में यह 4 साल तक रहता है। दो साल का वेटिंग पीरियड जैसे Cataract, Knee Replacement, Stone आदि में होता है और चार साल का पीरियड Heart Disease, Kidney Disease, Leaver Disease आदि की बिमारियों में रहता है।

आप Insurance Company से या अपने Insurance Agent से Waiting Period के बारे में सवाल जरूर करें। Different Policies और Insurance Companies में Waiting Period में कुछ अंतर हो सकता है लेकिन Waiting Period सभी Policies में होता है।

4. क्या रूम रेंट पर कैपिंग (Room Rent Capping) होगी ? यदि हाँ तो कितनी ?

कई स्वास्थ्य बीमा योजनाओं (Health Insurance Policy or Mediclaim Policy) के तहत, जब बीमा राशि 5 लाख रुपये तक होती है, तो पॉलिसी के तहत कमरे के किराए पर सीमाएं होती हैं। यह सीमा बीमा राशि के प्रतिशत के रूप में व्यक्त की जाती है और बीमा राशि के 1% से 2% के बीच होती है। उदाहरण के लिए, यदि बीमित राशि 5 लाख रूपए है और कमरे के किराए की सीमा बीमा राशि का 1% है, तो लागू सीमा 5000 रूपए प्रति दिन होगी।

रूम रेंट पर कैपिंग कितनी? यह सवाल भी आप अपने एजेंट से जरूर पूछे।

5. आनुपातिक कटौती (Proportionate Deduction) : अब ये क्या है ?

कई अस्पतालों में इलाज के लिए चार्जेज (Treatment Charges) और डॉक्टर की फीस कमरे के प्रकार के आधार पर ली जाती है। मतलब यदि कमरा महंगा लिया जाए तो डॉक्टर की फीस भी ज्यादा, जबकि डॉक्टर वही, बीमारी वही, हॉस्पिटल वही, दवाइयां वही बस कमरा महंगा तो ईलाज भी महंगा । IRDA कुछ तो गरीबों पर रहम करो। पता नहीं यह कौन सा नियम है? मान लीजिये यदि आपको एक सुइट रूम में भर्ती कराया जाता है तो इसकी लागत सामान्य कमरे में किए गए समान उपचार की तुलना में अधिक होगी। इसलिए, चूंकि अस्पताल कमरे के किराए के आधार पर अपनी लागत की कीमत लगाते हैं, इसलिए स्वास्थ्य बीमा कंपनियां ज्यादा कमरे के किराए वाले कमरों के लिए उच्च दावों का भुगतान नहीं करना चाहती हैं, और यह तब होता है जब योजना / Policy के तहत कमरे के किराए पर सीमा होती है।

यदि आपका वास्तविक कमरे का किराया सीमा से अधिक है, तो बीमा कंपनी अस्पताल में भर्ती होने की पूरी लागत का भुगतान नहीं करती है। यह उस लागत के अनुपात में बिल को कम कर देता है जो कि यदि आपने कमरे के किराए की सीमा के भीतर उपचार लिया होता तो खर्च होता। एक उदाहरण से समझते हैं-

उदारहण :5 लाख रुपये की बीमा राशि की Policy के लिए मान लीजिये कमरे के किराए की सीमा 1% यानि 5000 रूपए है। यदि आप ऐसे कमरे में इलाज चाहते हैं जिसका किराया 6000 रुपये है और कुल अस्पताल में भर्ती होने का बिल 1.5 लाख रुपये है, तो Claim की Calculation इस प्रकार की जाएगी-

रूपए 1.5 लाख * (5000/6000) = रूपए 1.25 लाख is the Payable Amount.

इसलिए यह सवाल भी आप अपने एजेंट से जरूर पूछे और न केवल पूछे बल्कि इसे अच्छे से समझें। यदि आपका एजेंट आपको इस Concept को अच्छे से समझा देता हो तो समझो आपको एक अच्छा एजेंट मिला हुआ है और आप उस पर भरोसा कर सकते हैं।

6. अगला सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है की मेरी पालिसी में किस चीज का पैसा नहीं मिलेगा यानि Exclusions क्या हैं ?

Exclusions

Exclusions शब्द सुनने में तो बहुत ही प्यारा सा लग सकता है लेकिन क्लेम होने पर यह आपकी जेब पर भरी पड़ सकता है । देखिये दोस्तों वैसे तो Exclusions यानि किस बीमारी का पैसा आपकी पालिसी के अंतर्गत पेयबल नहीं होगा यानि वो कौनसी बीमारी हैं जिनका क्लेम कमपनी आपको नहीं देगी। ये सवाल आपके लिए जानना बहुत ही जरूरी है। इसलिए आप अपने समझदार एजेंट से यह सवाल भी आप अपने एजेंट से जरूर पूछे।

7. मुफ्त चिकित्सा जांच

जी हाँ, यह सच है, आपकी Health Insurance Policy मुफ्त चिकित्सा जांच की अनुमति देती है। हालांकि, ऐसे कई लोग हैं जो यह नहीं जानते कि इसका लाभ कैसे उठाया जाए, जबकि लोग यह समझते हैं कि इससे प्रीमियम बढ़ सकता है।

यदि किसी पालिसी में 4 वर्ष तक कोई क्लेम नहीं है तो कुछ Insurance Companies Sum Insured का एक प्रतिशत खर्च (1 % of the Sum Insured) Rs. 5000 मेडिकल टेस्ट करने के लिए देती हैं। यदि Policy Holder Policy Renew के समय Sum Insured को बढ़ाना चाहता है तो बढ़ा सकता है।Medical Tests के परिणामों का पालिसी के प्रीमियम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

इन सवालो की लिस्ट बहुत ही लम्बी है लेकिन ये कुछ ऐसे सवाल है जिनका उत्तर हेल्थ पालिसी लेते समय जानना बहुत ही जरूरी है।

For More Information, please mail: nareshkumaruiic@gmail.com

धन्यवाद् !

Questions Before Buying Health Insurance Health Insurance Questions

Secure Your Home Loan (अपने होम लोन को सुरक्षित करें )

मेरे पड़ोस में एक मिस्टर शर्मा जी किराए के मकान में रहते थे। उनका जीवन में बस एक ही सपना था की उनका अपना मकान हो। एक दिन उनका ये सपना साकार भी हो गया। उन्हें पास की ही एक सोसाइटी में २ कमरों का मकान बहुत ही अच्छे दामों पर मिल गया ।

Secure Your Home Loan

हालाँकि २० लाख रूपए का लोन बैंक से भी लेना पड़ा। पूरा परिवार बहुत खुश था और होना भी चाहिए। हमारे प्यारे भारत देश में Middle Class Family के लिए अपना मकान होना अपने आप को एक संतुष्टि देता है। पूरी जिंदगी इसे खरीदने में लग जाती है लेकिन शर्मा जी के जीवन में यह ख़ुशी जल्दी ही आ गयी।

ख़ुशी जितनी जल्दी आयी उतनी ही जल्दी चली भी गयी। हुआ यूं की एक दिन शर्मा जी अपनी स्कूटी पर अपनी धर्म पत्नी जी के साथ घर लौट रहे थे की रास्ते में स्कूटी स्लिप कर गयी और दोनों गिर गए। हालांकि दुर्घटना बहुत ज्यादा खतरनाक तो नहीं थी लेकिन शर्मा जी को सर पर चोट लग गयी और करीब १ महीना अस्पताल में रहने के बाद भी उनको बचाया नहीं जा सका।

शर्मा जी की धर्म पत्नी पर तो मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। एक तो पति की मृत्यु दूसरा पूरे परिवार को चलाने का खर्च। बच्चे अभी छोटे – छोटे थे। और इस पर हर महीने बैंक को दी जाने वाली लोन की किश्तें । और अगर किश्त न जमा करवाए तो बैंक घर खली करवा लेगा।

ऐसे कितने ही किस्से हमें सुनने और देखने को मिल जाते हैं और ऐसी परस्थिति में हम चाहा कर भी कुछ नहीं कर सकते। लेकिन यदि हम थोड़ी से समझदारी दिखाए तो ऐसी परिस्थिति से बचा जा सकता है। लेकिन कैसे?

देखिये जब भी हम बैंक से घर खरीदने के लिए लोन लेते है तो जब तक लोन लेने वाले द्वारा लोन का पूरा पैसे ना चुका दे तब तक बैंक का ख़रीदे गए मकान पर पूरा अधिकार होता है और बॉरोअर (लोन लेने वाला) की मृत्यु होने या लोन न चुकाने के स्थिति में बैंक उस माकन को बेच कर अपने पैसे रिकवर कर लेता है। पूरा परिवार सड़क पर आ जाता है।

अच्छा बैंक बहुत ही चालक होते हैं, यदि ख़रीदा गया मकान आंधी, तूफ़ान, बाढ़, भूकंब आदि के कारण गिर जाता है या बह जाता है तो उससे बचने के लिए बैंक उस मकान का बीमा (Insurance) तो करवा लेता है और वो भी लोन लेने वाले के ही पैसों से लेकिन यदि खरीदार की मृत्यु हो जाये तो उसके लिए बीमा नहीं करवाता। इसलिए जब भी घर के लिए लोन लें तो खरीदार अपना बीमा जरूर करवाए।

खरीदार अपना बीमा दो तरीके से करवा सकता है। एक दुर्घटना बीमा और दूसरा जीवन बीमा।

दुर्घटना बीमा (Personal Accident Insurance) : व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा (Personal Accident Insurance) या पीए बीमा (PA) एक वार्षिक पॉलिसी है इसे हर साल renew करवाना होता है। यह दुर्घटना होने के कारण विकलांग होने पर या मृत्यु पर मुआवजा प्रदान करती है।

यह काम कैसे करता है : मान लीजिये किसी व्यक्ति ने २० लाख रूपए का लोन 20 वर्ष के लिए लिया है तो उस २० लाख का (Personal Accident Insurance) करवाना चाहिए। इसका प्रीमियम प्रति वर्ष करीब 1500 – 2000 रुपया तक आएगा। प्रति वर्ष इसको renew करवाने पर इतना ही प्रीमियम जायेगा। अब इन 20 वर्ष में यदि लोन लेने वाले की दुर्घटना से मृत्यु हो जाती है तो बीमा कंपनी नॉमिनी को 20 लाख रुपया एक मुश्त दे देगी और उस पैसे से बैंक का लोन चुका कर घर को बचाया जा सकता है और परिवार पर इसका बोझ भी नहीं आता। दुर्घटना का मतलब केवल रोड एक्सीडेंट नहीं है बल्कि किसी भी प्रकार की दुर्घटना जैसे सीढ़ियों से गिर जाना, किसी से टकराकर मृत्यु हो जाना आदि। दुर्घटना यदि किसी नशे में या आत्महत्या (suicide) है तो यह मुआवज़ा नहीं मिलता।

जीवन बीमा : यदि लोन लेने वाले के मृत्यु किसी बीमारी से हो जाये तो ऐसी स्थिति से बचने के लिए जीवन बीमा लिया जा सकता है। टर्म इंश्योरेंस एक प्रकार की जीवन बीमा पॉलिसी है जो एक निश्चित अवधि या निर्दिष्ट “अवधि” वर्षों के लिए कवरेज प्रदान करती है। यदि पॉलिसी में निर्दिष्ट समय अवधि के दौरान बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और पॉलिसी सक्रिय है, या लागू है, तो मृत्यु लाभ का भुगतान किया जाएगा।

यह काम कैसे करता है : टर्म इन्शुरन्स लेने पर लोन लेने वाले की मृत्यु (किसी भी बीमारी से) होने पर बीमा कंपनी एक मुश्त पैसा, जितने का बीमा लिया गया है, परिवार को दे देती है उस पैसे से बैंक का बकाया कर्ज चुकाया जा सकता है। दुर्घटना यदि किसी नशे में या आत्महत्या (suicide) है तो यह मुआवज़ा नहीं मिलता। टर्म इंश्योरेंस रेगुलर जीवन बीमा पालिसी से काफी सस्ता होता है। अपने घर और परिवार की खुशियों के लिए यह पालिसी जरूर लेनी चाहिए।

अब ये तो हुई बैंक लोन को सिक्योर करने का तरीका। लेकिन यदि अपने कोई होम लोन नहीं भी ले रखा तब भी आपको अपने घर का बीमा तो जरूर करवाना चाहिए। यह बहुत ही सस्ता बीमा होता है लेकिन विडंबना यह है की हमारे प्यारे भारत देश में इसकी जागरूकता बहुत ही काम है। देखिये, मान लीजिये यदि किसी का मकान आंधी, तूफ़ान, बाढ़, भूकंब, घर में आग लगने से नुकसान आदि किसी प्राकर्तिक आपदा से गिर जाता है या बह जाता है तो उसको दोबारा बनाने के लिए खूब सारा पैसे चाहिए। इस लिए आप घर का बीमा जरूर करवाइये। 10 लाख का घर का कर बीमा मात्र 300 रुपया प्रति वर्ष में लिया जा सकता है।

यदि आप इसके बारे में ज्यादा जानना चाहते है तो कृपया Comment करें।

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